वाह शांति तिग्गा
राजन कुमार
ऐसा नहीं है कि इससे पहले किसी भारतीय महिला ने प्रशंसनीय काम नही किया था। इंदिरा गांधी से लेकर किरण बेदी, प्रतिभा पाटिल, सुनीता विलियम्स, मायावती, पीटी उषा या सरोजिनी नायडू इत्यादि ने अपने कार्य क्षेत्र मे एक अद्भुत कार्य कारनामा किया जिसकी खूब प्रशंसा भी की गई। उस समय (जब अद्भुत कारनामा किया) ये महिलाएं कई दिनों तक सुर्खियां बनी रहीं। इस श्रेणी में एक और नया नाम जुड़ गया है ‘‘शांति तिग्गा’’। आदिवसी बाला शांति तिग्गा भारत ही नही, विश्व की पहली महिला जवान हैं जिसने इतने कड़े मेहनत के बाद एकमात्र महिला जवान बनने का गौरव हासिल किया। शांति तिग्गा के कारनामे उपरोक्त महिलाओं से कहीं बहुत अद्भुत है, इसके बावजूद इस आदिवासी महिला और प्रथम महिला जवान को वो सम्मान, प्रशंसा नही मिला जो उपरोक्त महिलाएं किरण बेदी, सुनीता विलियम्स सरीखे महिलाओं को मिला(शांति तिग्गा: डेढ़ लाख पुरुष जवानों के बीच एकमात्र महिला जिन्होने डेढ़ लाख पुरुषों को पछाड़ कर ट्रायल के दो विभाग में प्रथम और एक विभाग में द्वितीय स्थान हासिल किया)। ऐसा अद्भुत कारनामा करने के बावजूद इस महिला जवान को वो प्रशंसा, वो सम्मान क्यों नही मिला? क्या वो आदिवासी थी? इसलिए। आखिर हमारा देश, हमारा समाज आदिवासियों के प्रति इतना सौतेला व्यवहार कैसे करता है? क्यों करता है?
आदिवासी हमारे समाज का वह व्यक्ति है जो बहुत पुराने समय से इस देश की धरती पर वास करता आया है और इस जमीन का मालिक भी है, फिर आदिवासियों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया जाता है? भारत की एक बड़ी आबादी ‘‘आदिवासी’’ के साथ हम ऐसे नही कर सकते है। हमें आदिवासियों को भी समाज के मुख्य धारा से जोड़ना पड़ेगा, आदिवासियों का हौसला बढ़ाना पड़ेगा और इनके विकास पर विशेष ध्यान देना होगा। आज आदिवासियों इस पिछड़ेपन की जिम्मेदार सरकार और समाज है जो इनके भोलेपन का फायदा उठा कर इनके साथ हमेशा गलत व्यवहार किया गया है।
शांति तिग्गा जब भारत की पहली महिला जवान बनी तो एकाध अखबारों ने जरुर छापा था लेकिन अंदर के पन्नो पर किसी कोने में, जहां शायद ही किसी का नजर पड़े। जबकि उपरोक्त महिलाओं के लिए सभी अखबारों ने, चैनलो ने तब जोरशोर से प्रकाशित किया था। कई संगठनों ने, राज्य सरकार, केन्द्र सरकार और अन्य लोगों ने सम्मानित किया था। लेकिन अफसोस इस बात का है कि आज उससे भी बेहतर कारनामा करने वाली पहली महिला जवान शांति तिग्गा के साथ मीडिया, समाज और केन्द्र से लेकर राज्य सरकार या स्थानीय प्रशासन ने सौतेला व्यवहार किया है। जब किसी खेल मे भी कोई टीम जीत दर्ज करती है तो उसे पुरस्कृत और सम्मानित किया जाता है,लेकिन शांति तिग्गा के इस असाधारण कारनामें के लिए सम्मानित न करके शांति तिग्गा की अवहेलना किया गया है, महिला पक्ष और आदिवासी पक्ष का अवहेलना किया गया है। एक तरफ जहां सरकार बेटी बचाओ अभियान चला रही है, आदिवासियों का हितैषी बता रही है, आदिवासियों के विकास के दावे कर रही है वहीं दूसरी तरफ उभरते आदिवासी विलक्षणों की अवहेलना कर रही है। सरकार को अपनी गलती सुधारने की जरुरत है। शांति तिग्गा जैसे विलक्षण आदिवासी महिला को विशेष रुप से सम्मानित करने की जरुरत है, शांति तिग्गा का हौसला बढ़ाने हेतु एक बेहतर राशि प्रदान करने की जरुरत है। ताकि आने वाले विलक्षण आदिवासियों को एक बेहतर रास्ता मिल सके।
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