तेरा यूं चला जाना...
राजन कुमार
असम अपना एक जुझारु जनप्रतिनिधि खो दिया। असम के पूर्व मंत्री, विधानसभा के पूर्व विरोधी दल नेता तथा दूसरी बार राज्यसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित सिल्वियुस कोंडोपन का 10 अक्टूबर को नई दिल्ली स्थित एम्स में निधन से पूरा असम शोक मे डूब गया। यहां तक कि असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने भी अपना जन्मदिन नही मनाया जबकि कंडोपन की गिनती तरुण गोगोई के विरोधी खेमे के रुप मे होती थी।
माजबाट विधानसभा से लगातार पाच बार निर्वाचित सिल्वियुस कोंडोपन धेकियाजुलि शहर के 6 नंबर वार्ड के स्थायी निवासी थे। लंबे समय तक निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में गुवाहाटी- दिल्ली में व्यस्त रहने के कारण श्री कोंडोपन का पिछले तीन दशकों से धेकियाजुलि से संपर्क टूट गया था। इसके बावजूद होंठो पर असम और वहां के जनता के प्रति दिवानगी इस कदर थी कि होठों पर असम ही रहता था। असम में कांग्रेस को मुश्किल हालातों से उबारकर प्रमुख स्थान पर लाने में कंडोपन का अपूर्र्णीय योगदान रहा है।
असम के जुझारु नेता सिल्वियुस कोंडोपन अपने पीछे पत्नी और तीन पुत्र और एक पुत्री को छोड़ कर इस दुनिया से विदा हो गए। उनके शव को जब गुवाहाटी ले जाया गया तो लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी उनकी एक झलक पाने के लिए। लोगों के नम आंखो मे एक ही ख्वाहिश थी वे अपने चहेता की एक झलक तो देख ले। बहुत दिनों से देखा नही आज मौका भी मिला तो इस हालात में।
एक किसान परिवार में जन्में सिल्वियुस कंडोपन एक अच्छे वकील, समाजिक कार्यकर्ता, एक जुझारु नेता, प्रभावशाली शिक्षक के साथ-साथ एक अच्छे इंसान भी थे। इसी के बल पर वे आगे बढ़ते गए। कभी पीछे मुड़ कर नही देखा। लोगों में कंडोपन के प्रति दिवानगी का आलम किस तरह था इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कोंडोपन की गिनती मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के विरोधी खेमे में होती थी, बाबजूद इसके श्री गोगोई उन्हें श्रद्धाजंली देने दो दो बार राजीव भवन पहुचे। पहली बार वे सुबह 10 बजे जब पार्टी की तरफ से एक शोक संदेश पास किया गया। उसके बाद लगभग दो बजे जब कोंदापन के पाथर््िाव शरीर को नई दिल्ली से गुवाहाटी के राजीब भवन लाया गया तब। ज्ञात हो की इसी दिन मुख्यमंत्री के जन्म दिवस होने के बाबजूद उन्होंने कोंडोपन के मौत हो जाने पर अपना जन्मदिन नहीं मनाया।
कोंडोपन का जन्म सोनितपुर जिले के सापोई चाय बागन में 19 जुलाई 1938 को हुई। उनके पिता स्वर्गीय सुकरू हेमो कोंदापन एक चौकिदार थे। एक चौकिदार के बेटे होते हुए भी वे राज्य सभा तक पहुचे। कोंदोपन पहली बार राज्यसभा में 2004 में आये।
फिर दोबारा 2010 में फिर से राज्यसभा में सांसद चुने गए। 1978-79 संसदीय सचिव, वो कई महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान थे। कोंडोपन असम के चाय बागान क्षेत्र के प्रमुख नेताओं में से एक थे। 2004 में असम के आदिवासी और हरिजनों के आवाज उठाने के लिए उन्हे प्रसिद्ध बी.आर. आंबेडकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
1978 में वह राज्य विधानसभा में चुने गए और राज्य के कई बार कैबिनेट मंत्री रहे। वे असम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष्य उस समय रहे जब राज्य में अगप के सरकार थी और उल्फा के अतंग चरम पर था। आदिवासियों के विकास के बारे में हमेशा से सोचते रहने वाले कंडोपन का यूं चला जाना असम के आदिवासी को बहुत बड़ा झटका लगा है, जिसकी भरपाई नही हो सकती है।
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