आदिवासी बाला ने जीता ओलंपिक में कांस्य पदक
शाबाश मैरीकॉम
राजन कुमार‘‘शाबाश मैरीकॉम’’। आखिर दिखा दिया कि भारत का नाम रोशन करने में आदिवासी भी पीछे नहीं है। अपने पहले ही ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचने वाली एमसी मैरीकॉम पांच बार की विश्व चैंपियन भी हैं। मैरीकॉम के पदक से पूरा भारत, खासकर मणिपुर के लोग काफी खुश है। आर्थिक नाकेबंदी के कारण नाको चने चबाने वाले मणिपुर के लोग उस दौर को भुलाते हुए आज इस बात काफी खुश हैं कि मैरीकॉम ने एक ओलंपिक पदक पक्का करके मणिपुर राज्य को एक बार फिर सुर्खियों में ला खड़ा कर दिया।
एक पिछड़े हुए आदिवासी बहुल राज्य मणिपुर के साधारण आदिवासी किसान परिवार में जन्म लेकर ओलंपिक पदक तक पहुंचने का मैरीकॉम का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है। मैरीकॉम की इस सफलता में उनके पिता और पति का विशेष सहयोग रहा है। 8 अगस्त को सेमीफाइनल में हारकर कांस्य पदक जीतने वाली मैरीकॉम की ब्रिटिश प्रतिद्वंदी भी निकोला एडम्स भी मैरीकॉम की काफी प्रशंसा की। निकोला एडम्स ने कहा कि अगर मैरीकॉम शुरु से ही 51 वर्ग किग्रा में खेलते आई होंती तो शायद मै हार गई होती! एडम्स ने कहा कि ‘‘मैरीकॉम ने बहुत अच्छा खेला, लेकिन छोटी कद और इस वर्ग में नियमित नहीं खेल पाने से हार गई।’’
भारत के खेल मंत्री अजय माकन ने भी मैरी कॉम के खेल की तारीफ की। उन्होंने कहा, "मैरी कॉम अपने से अधिक वजन की श्रेणी में खेल रही थीं। वो अच्छा खेलीं लेकिन अपनी लंबी, युवा और मजबूत प्रतिद्वंद्वी से हारीं। ओलंपिक में कांस्य भी एक बड़ी उपलब्धि है।" मैरीकॉम निश्चित ही अरबों भारतीयों के उम्मीदों पर खरा उतरी है और आगे भी लोगों का दिल जीतती रहेगी।
भारत की मुक्केबाज़ एमसी मैरीकॉम लंदन ओलंपिक से कांस्य पदक लेकर लौट रही हैं। ओलंपिक खेलों में पहली बार हिस्सा लेने वाली मैरीकॉम का इस भव्य आयोजन में भाग लेना और एक पदक जीतने का सपना था जो इस बार पूरा हो गया। हालांकि भारत को और पूरे मणिपुर को शायद उनसे एक स्वर्ण पदक की आस थी, जो पूरी नहीं हो सकी। लेकिन इस उम्र में कांस्य जीतना किसी मुक्केबाज के लिए कम नहीं होता। पांच बार विश्व प्रतियोगिता का ख़िताब जीत लेना कोई मामूली बात नहीं होती। साइना नेहवाल और अभिनव बिंद्रा जैसे खिलाडियों के लिए भी विश्व चैम्पियन बनना अभी एक सपना सा है।
Rajan Kumar |
मैरीकाम के ओलंपिक पदक से सरकार को एहसास हो जाना चाहिए कि 8 प्रतिशत आबादी वाले आदिवासियों को अगर सही देख-रेख और प्रोत्साहन मिले तो निश्चित ही ये आदिवासी रत्न बाकी 92 प्रतिशत आबादी से ज्यादा खरे उतरेंगे। भारत को पहला ओलंपिक पदक भी आदिवासी ने ही दिलाया जब 1928 को अमेस्टड्रम आयोजित ओलंपिक प्रतियोगिता में जयपाल सिंह मुण्डा के नेतृत्व में खेलते हुए भारतीय हॉकी टीम ने स्वर्ण पदक जीत कर भारत को विश्व में पहचान दिलाई थी।
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