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Sunday, June 26, 2011

बंद चाय बगान के आदिवासियों के लिए पैकेज
राजन कुमार rajan kumar
पश्चिम बंगाल की नवनिर्वाचित सरकार ने राज्य के आदिवासियों के प्रति अपने विशेष चिंता  प्रदर्शित करते हुए  आदिवासियों की खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए  सुलभ मूल्य पर चावल की आपूूर्ति हेतु 156 करोड़ रूपयों की राशि आवंटित करने की घोषणा की है। आदिवासियों के प्रति मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विशेष रूप से चिंतित है तभी तो उन्होने उत्तर बंगाल के 16 बंद चाय बगानो के  बेरोजगार परिवारों के लिए खाद्य मंत्री ज्योति प्रिय मलिक को विशेष रूप से निर्देष दिया है कि वे आगामी 30 जून के अंदर उत्तर बंगाल के बंद चाय बगानों का दौरा करके सरकार को रिपोर्ट पेश करें। सरकार द्वारा आवंटित उपरोक्त राशि  के तहत बीपीएल  एवं अन्नपूर्णा और अन्त्योदय  कार्डधारियों को दो रूपया प्रति किलो के दर से चावल उपलब्ध किया जायेगा। एवं इस उद्देश्य से अगले तीन माह के लिए 1 लाख 22 हजार 256 मैट्रिक टन चावल खरीदा जायेगा। उधर केन्द्र सरकार द्वारा उसी अनुपात में फुड कार्पोरेशन आॅफ इण्डिया द्वारा चावल की आपूर्ति करने की घोषणा की गयी है। 
16 बंद चाय बगानो के बारे में उपलब्ध जानकारी पर वर्तमान सरकार को भरोसा नही है क्यो कि ये सूचना  पूर्ववर्ती सरकार द्वारा संकलित की गयी थी।   इनमे से 15 चाय बगान जलपाईगुड़ी जिले मे और एक चाय बगान दार्जलिंग जिले में अवस्थित है। एक मोटे अनुमान के साथ इन चाय बगानो में 50 हजार  से ज्यादा आदिवासी श्रमिक परिवार  के पास जीविका का कोई साधन उपलब्ध नही है। रोटी और भोजन  की बात तो दूर इन बंद चाय बगानो में  पीने का पानी भी  उपलब्ध नही है, ना ही परविारों को आवासीय सुविधा या बिजली  उपलब्ध है। अत: मुख्यमंत्री ने  बंद चाय बागानो की दुरावस्था पर आवश्यक कदम उठाने का निर्णाय लेकर सराहनीय कार्य किया है। 
प्रश्न उठता है कि उपरोक्त 16 चाय बागान  क्यो बंद हैं  और  इनकी  विषय में राज्य सरकार के श्रम विभाग द्वारा आज तक क्या कार्रवाई की गयी है। क्या कारण है कि चाय बगान के मालिकों द्वारा  जब कभी भी चाय बगान में ताला बंदी की घोषणा  कर दी जाती है यह ताला बंदी का नोटिस चिपकाकर चाय बगान के मालिक या मैनेजर  रात के अंधेरे मे चाय बगान  छोड़ कर  भाग जाते है।  और चाय बागान  के मजदूरों  के वेतन , राशन, पानी, बिजली, दवा, के लिए किसी तरह की व्यवस्था नही की जाती है।  बंद चाय बागानों के बारे में राज्य सरकार को ठोस एवं कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है।  ठोस कानूनी कार्रवाई  द्वारा चाय बागान मालिकों को  सतर्क कर देने की आवश्यकता है, कि वे  मनमाने ढंग से चाय बागान बंद करके  न भाग सके।  बंद चाय बागानों को अविलम्ब  खुलवाने की दिशा में भी राज्य सरकार को आवश्यक कानूनी एवं शासकीय कार्रवाई करने की आवश्यकता है। 
नवनिर्वाचित सरकार पश्चिम बंगाल में नये उद्योगों के स्थापना के लिए  उत्सुक एवं सक्रिय  है।  तो जो पुराने उद्योग हैं और  विशेषकर उत्तर बंगाल का एकमात्र उद्योग चाय बगान है।  उनका पुनर्उद्धार एवं विकास के लिए सरकार को आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए।
नवनिर्वाचित सरकार के सामने बंद चाय बागान एक चुनौती है जो उद्योगों के विषय में सरकार नीति  और कार्यक्रम  को  उजागर करेंगी। 
उसी तरह जंगल महल में पश्चिम मिदनापुर जिला के 13 ब्लाक  और बाकुड़ा जिले के 5 ब्लाक  एवं संपूर्ण पुरूलिया जिला में जनसंख्या पर गौर किया जाये तो यह भी आदिवासियों की जनसंख्या 35 प्रतिशत से ज्यादा है।  और इनके साथ है कुर्मी महतो सम्प्रदाय के लोग  जिनकी संख्या 30 प्रतिशत है।  कुर्मी महतो एवं आदिवासी   की भाषा एवं संस्कृति  में एक रूपता है।  इनकी भाषा संथाल, मुण्डारी , कुर्माली , कुड़ुख  इत्यादी है। उल्लेखनीय है कि 1935 तक  कुर्मी महतो समुदाय भी अनुसूचित जनजाति में शामिल था।  सरकारी अवहेलना के  कारण  जंगल महल  का यह  कुर्मी महतो एवं आदिवासी  समुदाय  आर्थिक दृष्टि से  पिछड़ा रह गया। हर्ष का विषय है कि  नई सरकार ने जंगल महल के  आदिवासियों के विकास  के लिए  विशेष पैकेज  की घोषणा करके   उनका  ध्यान रखा। 
 गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्तर पर  अनुसूचित जातियों, जनजातियों  पिछडे  वर्गों  , अल्पसंख्यकों , महिलाओं  आदि के उन अधिकारी  की बहाल करने का जिक्र नही है जिनमें एक  के बाद एक सरकार घेर तिरस्कार का रवैया  अपनाए रही।  यहां तक कि  उपेक्षित  वर्गों की सत्ता में आनुपातिक  हिस्सेदारी देने वाले संवैधानिक  प्रावधानोंं की भी ठीक से  लागू नही किया गया।  जिसका फलस्वरूप  आज भी सरकारी नौकरियों  मे 2006-07 की कार्मिक विभाग की रिपोर्ट के  अनुसार  श्रेणी एक और दो में अनुसूचित जातियो का प्रतिशत 11.9 और 13.7 ( कुल 16 .00 ) की तुलना में   अनुसूचित जातियों को  4.3 और 4.5 (7.5 की तुलना में )  रहा है। 
इन उपेक्षित वर्गोंं की समस्याओं का  आकलन  केवल राशन कार्ड , बीपीएल कार्ड  , एवं  मनरेगा,  योजनाओं के संन्दर्भ में  होता है।  इस का उद्देश्य इन उपेक्षित वर्गों को  भीखमंगे पन के स्तर पर   ( रोजाना 20 रूपयें ) किसी तरह  जिंदा रखना  है।

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