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Saturday, July 30, 2016

9 अगस्त - विश्व आदिवासी दिवस
लौह महिला इरोम शर्मिला 
ने जनअधिकार के लिए फूंका चुनावी बिगुल


राजन कुमार

Iron lady Irom Sharmila

नई दिल्ली। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र या महान लोकतंत्र कैसे अपने लोगों के लोकतांत्रिक आंदोलनों को कुचलता है, उन आंदोलनों का भद्दा मजाक उड़ाता है और अंत में निष्क्रिय कर देता है, इसे समझने की जरूरत है। क्यों ऐसे आंदोलनों से देश के सभी छोर के लोग नहीं जुड़ पाते हैं, यह भी समझने की जरूरत है। 

16 साल तक आमरण अनशन करने वाली लौह महिला इरोम शर्मिला के आंदोलन को संभावनाहीन बना देना भी तो इस लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है। आखिर तभी तो अपनी जिंदगी के खूबसुरत 16 साल आमरण आंदोलन में गंवा देने के बाद भी परिणाम कुछ खास हासिल न हो सका।
नवंबर 2000 में इम्फाल में असम राइफल्स के जवानों की फायरिंग में 10 लोगों की मौत के बाद से इरोम चानू शर्मिला ने अपना अनशन शुरू किया था। वह बेवजह मारे गए निदोर्षों के लिए पिछले 16 वर्षों से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) का विरोध कर रही हैं, लेकिन उनकी लाख कोशिशों के बावजूद आज तक अफस्पा कायम है और भविष्य में भी उसके रद्द होने की कोई संभावना नहीं दिखने पर अब उन्होंने अपना आंदोलन आगामी 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस  के मौके पर समाप्त करने का ऐलान किया है। 

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इरोम शर्मिला के आंदोलन को संभावनाहीन हो जाना दर्शाता है कि कैसे इस लोकतंत्र के लोग आपस में एक छोर से दूसरे छोर तक घोर संवेदनहीनता से ग्रसित हैं। या बहुत हद तक विरोधी भी, जैसे, झारखण्ड-छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र के आदिवासियों को नक्सली, पूर्वोत्तर को आदमखोर या उग्रवादी और कश्मीरियों पर आतंकवादी का आरोप लगाने से भी परहेज नहीं करते।


लंबे अरसे से जिंदगी और मौत से जूझ रही इरोम शर्मिला का यह फैसला लोकतांत्रिक आंदोलनों से उठते भरोसे का सबूत है। इतने सालों में कई सरकारें आई और कई सरकारें गईं, लेकिन किसी ने भी शर्मिला के आंदोलन के प्रति कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई।


'लौह महिला' इरोम चानू शर्मिला ने कहा कि अपने आंदोलन के प्रति आम लोगों की बेरूखी ने उन्हें यह फैसला करने के लिए बाध्य कर दिया। वह सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम (आफस्पा) हटाने की उनकी अपील पर सरकार की तरफ  से कोई ध्यान नहीं देने और आम नागरिकों की बेरूखी से मायूस हुई हैं, जिन्होंने उनके संघर्ष को ज्यादा समर्थन नहीं दिया। 


इतने सालों से सत्ता के असंवेदनशील रवैये ने शर्मिला को सक्रिय राजनीति में आने को मजबूर कर दिया, क्योंकि उनके 16 सालों के लंबे संघर्ष के बावजूद सरकारें जनविरोधी कानून पर पुनर्विचार करने में असमर्थ रहीं।


16 साल के लंबे और ऐतिहासिक अहिंसक आंदोलन करने वाली इरोम शर्मिला मणिपुर में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लडऩे का फैसला किया है। अनशन तोडऩे के बाद शादी भी करने की चर्चा है। 


दो साल पहले इरोम शर्मिला ने दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में कहा था कि अनशन करना उनका शौक नहीं है। किसी भी सामान्य व्यक्ति की तरह वह भी खाना चाहतीं हैं, भूखे रहकर मरना नहीं चाहतीं। सरकार अगर अफस्पा हटा लेती है तो वह तुरंत अपना अनशन खत्म कर देंगी।
लेकिन अफस्पा अभी हटा नहीं है, फिर भी इरोम ने अनशन खत्म कर सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेने की बात कही हैं। जो उनके दिल में देशवासियों के प्रति, जनता के अधिकारों के प्रति प्यार और जुनून को दर्शाता है। 16 साल के अनशन से इरोम का आत्मविश्वास और बढ़ा है। वह राजनीति में आकर जनता के अधिकारों के लिए लडऩा चाहती हैं और अपने आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाना चाहती हैं। हालांकि इरोम के इस फैसले से उनके घर वाले खुश नहीं हैं, लेकिन उनका यह फैसला जनता के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा दिखाती है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भी उन्हें थोड़ी राहत मिली है। 


गौरतलब है कि इसी महीने मणिपुर में एक फर्जी मुठभेड़ के मुकदमे की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) अधिनियम के तहत अशांत घोषित क्षेत्रों में उग्रवाद के खिलाफ कार्रवाई के दौरान सेना अत्याधिक बल प्रयोग नहीं कर सकती है। हालांकि इससे थोड़ा राहत की सांस ली जा सकती है, लेकिन पूर्णतया न्याय अब भी इस मामले पर बाकी है।


ईरोम चानू शर्मिला जल्द एक राष्ट्रीय नेता के रूप में जनअधिकारों की हुंकार के साथ राजनीतिक फलक पर दिखेंगी, जिसे अन्य नेता परहेज करते दिखते हैं। 


इसी शुभकामना के साथ आदिवासी लौह महिला को सलाम।


Rajan Kumar
& Team 
JAYS (Jai Adivasi Yuva Shakti)
Mission - 2018
Right for Adivasi, Fight for Adivasi
Rajan Kumar