अगर देश से जात का भेदभाव मिटाना है तो आरक्षण जाति के आधार पर क्यों।एक आम आदमी, एक महीने का बिजली बिल न भर पाए तो कनेक्शन काट दिया जाता है, मगर एक नेता, पाखंडी बाबा या अफसर, जब तक देश समाज या कंपनी को पूरा निगल नहीं जाता तब तक पता ही नहीं चलता, आखिर क्यों॥
अगर देश से जात-पात का भेदभाव मिटाना है तो आरक्षण जाति के अधर पर क्यों.............
एक आम आदमी भूख और अत्याचार से मर जा रहा है। लिकिन सरकार मूर्तियाँ और खेल के नाम पर पैसे लुटने का कारोबार कर रही है........ आखिर क्यों?
एक आम आदमी किसी vip के आने पर अस्पताल नहीं पहुँच पाता है और मर जाता है। जबकि और प्लेन हाइजैक कर लेते है कैसे? क्यों..........?
और कब तक.................
इसके पीछे कौन है.....
पर्दा क्यों नहीं उठ रहा है........?
आज वक्त है जबाब लेने का...............
इस भ्रष्टाचार को मिटायें हम मिलकर...............
एक युवा भारत बनाने का संकल्प लें ..........
आपका संकल्प और हमारा संकल्प ही अपने देश को मजबूत बनता है.
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Tuesday, September 13, 2011
भूमि अधिग्रहण विधेयक और किसान, आदिवासियों के अधिकार
राजन कुमार

भारत मे न तो कानून बदला गया और न ही लोगों किस्मत बदली। छ: दशक बाद भी भारत के लोग कई ज्वलंत मुद्दों को लेकर प्रशासन के आग मे जल रहे हैं। जिसमें भूमि अधिग्रहण विधेयक प्रमुख है। संसद मे प्रस्तावित नई भूमि अधिग्रहण विधेकय पर तीखी बहस होना जाहिर करता है कि यह किसान और आदिवासी विरोधी है। विधेयक पेश होने से पहले सरकार ने किसानों और आदिवासियों को यह भरोसा दिलाया था कि यह विधेयक किसानो और आदिवासियों के हित मे होगा फिर किसान अौर आदिवासी विरोधी भूमि अधिग्रहण विधेयक क्यों पेश किया गया? यह विचारणीय तथ्य है। देश भर के आदिवासी और किसान अपनी जमीन के अधिकार के लिए लड़ रहें है आखिर क्यों? एक लोकतांत्रिक देश में ऐसी नौबत क्यों आती है सभी को अपने अधिकार के लिए लड़ना पड़ता है? आखिर कमी किसमे है? आजादी के बाद से बनी सभी सरकारों मे या भारतीय कानून में? यह प्रमुख पहलू है, देश का नेतृत्व कर रही सरकार को इन प्रमुख पहलूओं पर ध्यान देने के जरूरत है। देश मे वहीं कानून पारित किये जायें जो सिर्फ राष्ट्रहित और जनहित मे आता हो, उन देशों के कानूनों को ध्यान मे रखा जाये जहां सरकार और जनता मे कभी कोई विवाद की नौबत नही आयी हो, जनता और सरकार मे बेहतर तालमेल हो।
संसद मे पेश भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित करने से पहले आस्ट्रेलिया सहित कई देशों के उस भूमि अधिग्रहण विधेयक पर ध्यान देने की जरूरत थी जहां अधिग्रहण को लेकर सरकार और किसान/आदिवासी मे कोई विवाद नही है। इन देशों मे कंपनियों को सीधे आदिवासियों और किसानों से जमीन खरीदनी पड़ती है। यहां पर सीधे तौर पर किसानों और आदिवासियों को उनके जमीन का अधिकार दिया गया है।
आस्ट्रेलिया की भूमि अधिग्रहण विधेयक
आस्ट्रेलिया ने आठ साल पहले अपने भूमि अधिग्रहण कानून मे बदलाव करते हुए जमीन खरीदने की पूरी जिम्मेदारी कंपनियों पर डाल दी। इतना ही नही, कंपनियां जमीन खरीदते वक्त समझौतों मे किसी तरह की छेड़छाड़ न करे, इसके लिए किसानों और आदिवासियों को सरकार की तरफ से कानूनी सहायता मुहैया कराई जाती है। आस्टेÑलियाई कानून के मुताबिक कंपनी को 14 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय लोगों को देनी होती है। कंपनी कोई भी चीज खरीदती है और उसके लिए कोई स्थानीय व्यक्ति टेंडर करता है, तो कानून के मुताबिक कंपनी को उसे तरहीज देनी होगी। स्थानीय लोग सिर्फ मजदूर बनकर न रह जाएं, इसके लिए कंपनी को लगातार उन लोगों को टेÑनिंग का इंतजाम करना होता है। कंपनी मे किसी स्तर पर नई भर्ती होती है और पुराना स्थानीय कर्मचारी उस योग्यता को पूरा करता है, तो पहले उसे नाम पर विचार किया जाता है। आस्टेÑेलिया के कई क्षेत्रों मे खनन कर रहे अंतर्राष्ट्रीय कंपनी रियो टिंटो के प्रबंधक कैरिस के दावे के मुताबिक, स्थानीय लोगों को तरक्की देने के लिए कंपनियां कई कार्यक्रम चलाती है। इसके तहत रियो टिंटो भी क्षेत्र मे कई टेÑनिंग कैम्प चला रहा है। कई बार ऐसा होता है कि कई बार ऐस होता है कि कई लोग अपनी जमीन देने के लिए तैयार नही होते। ऐसी स्थिती मे जब कंपनी करीब 75 फीसदी जमीन खरीद लेती है, तब सरकार हस्तक्षेप कर बाकी लोगों को इसके लिए तैयार करती है। इसके अलावा भूमि अधिग्रहण मे सरकार का कोई हस्तक्षेप नही है। (आस्ट्रेलिया मे भूमि अधिग्रहण विधेयक, 9 सितंबर को दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित सुहैल हामिद का लेख है।)
Posted By Rajan Kumar
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