Search This Blog

Wednesday, February 2, 2011

करमापा की संपत्ति

तिब्बती बौध्दों के तीसरे सबसे बड़े धर्मगुरु 17वें करमापा उग्येन त्रिनले दोरजी के धर्मशाला स्थित मठ से लगभग सात करोड़ रूपए की देशी और विदेशी मुद्रा की बरामदगी ने भारत के समक्ष कई गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। पहला प्रश्न यह कि एक धर्मस्थल पर इतनी बेनामी, बेहिसाब संपत्ति किस तरह एकत्र हो गई? दूसरा अगर यह राशि ट्रस्ट के लिए थी, तो फिर उसे किसी खाते में क्यों नहींरखा गया, एक होटल मालिक व बैंक प्रबंधक इसमें किस तरह लिप्त हो गए? बरामद राशि में चीनी मुद्रा युआन किस प्रयोजन से वहां दी गयी? यह राशि एक दिन में वहां नहींपहुंची होगी, यह खेल कई दिनों से चल रहा होगा, क्या खुफिया एजेंसियों को इसकी भनक पहले से नहींथी? अगर थी, तो इसे उजागर करने में इतना वक्त क्यों लगा? तिब्बतियों के सबसे बड़े धर्मगुरु दलाई लामा ने इस तरह के संवेदनशील मसले पर कोई प्रतिक्रिया देने से पहले इंतजार क्यों नहींकिया और जांच एजेंसियों द्वारा पड़ताल करने से पहले ही करमापा का समर्थन क्यों किया? क्या दोरजी करमापा के मठ से विदेशी मुद्रा पकड़ाने के पीछे कोई गंभीर साजिश है? क्या करमापा चीन के एजेंट के रूप में भारत में रह रहे हैं, जैसा कि कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं। या यह चीन की कोई चाल है कि वह भारत में बौध्द अनुयायियों को भड़काकर भारत के लिए कोई मुश्किल खड़ा करना चाहता है? क्या करमापा को चीन का जासूस बताने से भारत-चीन संबंधों में पहले से कायम तल्खी और नहींबढ़ जाएगी? अगर भारत करमापा को चीन वापस भेज देता है, तो क्या चीन उन्हें भारत का एजेंट बताकर तंग नहींकरेगा? क्या तिब्बत पर चीन के दावे और भारत द्वारा तिब्बती शरणार्थियों को पनाह दिए जाने का कोई संबंध इस घटना से है? इन सारे सवालों पर भली-भांति विचार कर के ही भारत की जांच एजेंसियों को आगे बढ़ना चाहिए। चाहे घर हो या धार्मिक स्थल, छोटा कारखाना हो या किसी बड़े उद्योगपति का दफ्तर, देश की सुरक्षा से जुड़े नियम-कानून सबके लिए एक से होते हैं। बिना हिसाब-किताब के, प्रशासन को जानकारी दिए बिना करोड़ों की विदेशी मुद्रा अपने पास रखना एक गंभीर अपराध है। इस नजरिए से सोचें तो धर्मशाला में करमापा के मठ से विदेशी मुद्रा पकड़ाने के मामले को धार्मिक भावनाओं के परे होकर सुलझाने की आवश्यकता है। करमापा ने पूछताछ में कहा कि देश-विदेश में स्थित उनके विभिन्न श्रध्दालुओं ने दानस्वरूप यह राशि उन्हें दी है। लेकिन इस तर्क पर आंख मूंदकर विश्वास नहींकिया जा सकता। मठ, मंदिर, धार्मिक ट्रस्टों में दी जाने वाली दानराशि का भी बाकायदा हिसाब-किताब रखा जाता है, उनके बैंक खाते होते हैं। खबरें हैं कि इस राशि से भूखंड खरीदने की योजना थी। जांच एजेंसियों ने इस मामले में करमापा से जो पूछताछ की, उसमें मिले जवाब से वे संतुष्ट नहींहैं। इधर श्रध्दालु करमापा के समर्थन में सामने आ रहे हैं। सोमवार को उनके मठ पर भक्त इस तरह एकत्र हुए मानो कोई उत्सव हो। इन हालात में जांच एजेंसियों के लिए इस गुत्थी को सुलझाना और भी कठिन हो गया है। चीन ने करमापा को अपना एजेंट होने की बात पर नाराजगी भरी प्रतिक्रिया दी है। उसने इस बात से साफ इन्कार किया है कि करमापा उसके जासूस हैं। भारत में यह संदेह इसलिए पनपा कि करमापा इस सदी की शुरुआत में जिन परिस्थितियों में चीन से भागकर भारत आए थे, तब भी उनकी बातों पर गुप्तचर एजेंसियों को यकीन नहींहुआ था। उनकी उम्र व करमापा के अवतार होने की बातों पर शक जताया गया था। धीरे-धीरे शक-शुबहे पर धार्मिक आस्था ने प्रभाव जमा लिया, और वे सारी बातें दब गयीं। अब विदेशी मुद्रा पकड़ाने से पुरानी बातों को भी खंगाला जा रहा है। फिलहाल यही उचित होगा कि इस प्रकरण में केवल कानून को ऊपर रखकर जांच-पड़ताल और कार्रवाई की जाए, और भावनाओं में बहकर अतिरेकपूर्ण बयानबाजी, विश्लेषण या अनुमान न लगाया जाए। धर्मशाला के मठ की तरह भारत के कई स्थानों में विभिन्न धार्मिक स्थलों में अकूत संपत्ति एकत्र है, जो धर्मगुरुओं को श्रध्दालुओं के दिए दान से एकत्र हुई है। धर्म के नाम पर एकत्र हो रही काली-सफेद कमाई का हिसाब-किताब सरकार लेती रहे, तो काले धन के कई मामले उजागर होंगे।


No comments:

Post a Comment