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Monday, July 25, 2011

राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति की मान्यता के लिए संविधान संशोधन करने की आवश्यकता है: कड़िया मुण्डा
मुक्ति तिर्की
संविधान के निर्माताओं ने देश की 8.2 प्रतिशत जनजाति आबादी के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान रखते हुए  संविधान की धारा 342 (1)संवधिान(अनुसूचित जनजाति)आदेश 1950  के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था की है। मगर इस संविधान के इस आदेश के अंतर्गत विशेष अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों को राज्य विशेष , जिला या क्षेत्र विशेष तक ही सीमित कर दिया गया है। इस सीमांकन के कारण आदिवासी समाज लगभग एक पिंजड़े मे बंद हो गया और पिंजड़े से बाहर निकलते ही उसके नागरिक अधिकार, सुरक्षा व्यवस्था एवं सुविधाओंं में कटौती हो जाती है।  ऐसी परिस्थिति में असम राज्य हो या अण्डमान निकोबार हो या राजधानी दिल्ली हो, अनुसूचित जनजाति  के लोग अनुसूचित जनजातियों को मिलने वाले सभी विशेष अधिकार सुरक्षा एवं सुविधाओं से वंचित हो जाते है।  या आदिवासियों के लिए उनकी पहचान का संकट या प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देता है। जबकि आदिवासियों की पहचान किसी राज्य या जिले तक सीमित न होकर सिर्फ संपूर्ण राष्ट्र ही नही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिलना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी एक अहम फैसले में घोषणा की कि  भारत का आदिवासी वर्ग ही भारत का मूल निवासी है। सर्वोच्च न्यायालय के उक्त आदेश के आलोक में आदिवासी जनजाति समाज को पूरे भारत में मान्यता मिलनी चाहिए न कि किसी राज्या या जिला या क्षेत्र विशेष में। जब किसी ब्राम्हण या राजपूत या अन्य किसी जाति को राज्य, जिला या क्षेत्र के सीमा से परे पूरे देश में मान्यता मिलती है तो आदिवासी के साथ ऐसा भेदभाव क्यों? इसी तरह अगर किसी ने डाक्टरी या इंजिनीयरिंग की डिग्री या उपाधि हासिल कर ली है तो यह डिग्री पूरे विश्व में मान्य है न कि किसी एक देश, राज्य या क्षेत्र में। आदिवासियों के साथ ऐसा भेदभाव समान मानव अधिकार के संदर्भ में भी प्रश्न खड़ा करता है। 
 जब हम झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र मे आदिवासी का पहचान पाते है तो दिल्ली आकर हमारा आदिवासी पहचान क्यों छिन जाता है। झारखण्ड, उड़ीसा या छत्तीसगढ़ का आदिवासी व्यक्ति दिल्ली पहुंचकर गैर आदिवासी कैसे बन जाता है?
 इस विषय पर एवं आदिवासियों के पहचान तथा विकास से संबधित विभिन्न विषयों पर विस्तृत चर्चा करते हुए एक विशेष मुलाकात में वरिष्ठ आदिवासी नेता एवं लोकसभा के उपाध्यक्ष कड़िया मुण्डा ने कहा कि अनुसूचित जनजातियों को राज्य या जिले का दायरा समाप्त करके राष्ट्रीय स्तर पर  मान्यता प्राप्त करने के लिए संविधान ने संशोधन की आवश्यकता है। संविधान मे आवश्यक संसोधन के द्वारा ही अनुसूचित जनजाति को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हो सकती है। इसके लिए सभी राजनीतिक दलों  एवं अन्य समुदायों  के साथ विचार विमर्श करने की जरूरत है। ताकि अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय पहचान मिल सके। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश  पर उन्होने कहा कि जब संविधान का निर्माण हो रहा था उस वक्त सवोच्च न्यायालय था ही नही। अत: सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के संदर्भ में संविधान के संशोधन की आवश्यकता है। संविधान संशोधन के लिए संसद के लोकसभा और राज्यसभा द्वारा संविधान संशोधन बिल पारित होने के बाद ही आदिवासियों को राष्ट्रीय मान्यता मिल सकती है।
ग्रामीण क्षेत्रों से आदिवासियों के पलायन , विस्थापन तथा विकास के विषय में लोकसभा उपाध्यक्ष कड़िया मुण्डा ने कहा कि विकास के लिए भूमि की आवश्यकता हैै। मगर आदिवासी क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने के लिए आदिवासी लोग भूमि देना नही चाहते या भूमि अधिग्रहण का विरोध करते है। जिसके कारण आदिवासी क्षेत्रों मे नये कारखाने तथा अन्य उद्योग विकसित नही हो पा रहें है। नतीजतन बड़े पैमाने पर जीविका के तलाश में आदिवासी युवक युवती गांव छोड़कर दिल्ली जैसे महानगरों की ओर पलायन कर रहें है। श्री मुण्डा ने प्रश्न किया कि क्यों झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, के ग्रामीण इलाकों से लाखों आदिवासी युवतियां दिल्ली जैसे महानगर मे घरेलू काम काज करने को मजबूर है। उन्हे कौन दिल्ली ले कर आया। जाहिर है जीविका और रोजगार के लिए उन्हे अपना देश छोड़कर के परदेश दिल्ली आना पड़ा।
उन्होने कहा कि अगर उन्हे अपने ही राज्य झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ या पश्चिम बंगाल में रोजगार या जीविका का साधन उपलब्ध हो जाता तो उन्हे दिल्ली आने की जिल्लत नही उठानी पड़ती। जाहिर है उन राज्यों में रोजगार उत्पन्न करने के लिए उद्योग का विकास करना होगा और उद्योग स्थापित करने के लिए भूमि की आवश्यकता है।
श्री मुण्डा ने सुझाव दिया कि विकास और रोजगार के लिए उन्हे अपने भूमि का हिस्सा देना  पड़ेगा। अत: आदिवासी समाज को इस विषय में गंभीर चिंतन मनन करने की आवश्यकता है कि समाज के विकास के लिए भूमि की आवश्यकता है। उन्होने  विकास के लिए भूमि की कमी की चर्चा करते हुए बताया कि उनके चुनाव क्षेत्र खूटी में केन्द्रीय विश्वविद्यालय  की स्थापना की तैयारी हो रही थी मगर  भूमि उपलब्ध नही होने के कारण खूटीं में केन्द्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना नही हो सकी । अभी वर्तमान में खूंटी को नॉलेज सिटी  के तौर पर विकसित करने के लिए वहां इंजीनियरिंग कालेज  तथा मेडिकल कालेज की स्थापना  होने जा रही है। इन विकास योजनाओं से स्थानीय छात्र छात्राओं को उच्च शिक्षा के साथ-साथ स्थानीय लोगो ंको रोजगार  के अवसर भी मिलेंगे।   मगर दुखद विषय है कि कुछ लोग इन योजनाओं का भी विरोध कर रहें है।  जबकि सरकार की सोच यह है कि खूंटी में पावर ग्रिड की भी स्थापना की जानी चाहिए।

posted by Rajan kumar

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