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Wednesday, September 12, 2012

कौन कहता है कि आदिवासियों के जान की कोई कीमत है!
Rajan Kumar कौन कहता है कि आदिवासियों के जान की भी कोई कीमत होती है। अगर आदिवासियों के जान की कीमत होती तो आदिवासियों पर इतना अत्याचार क्यों होता! सरकार आदिवासियों की सुध क्यों नहीं लेती!
रांची में सुरक्षाबलों ने जान बुझकर आदिवासी भीड़ पर ट्रक दौड़ा दी। भगदड़ में कई आदिवासी गिरे जिन्हें सुरक्षाबलों ने गाड़ी रौंदते हुए आगे निकल गए, फिर उसी भीड़ पर ट्रक को वापस दौड़ाया, जिससे दो-तीन आदिवासी घायल हो गए और बोले उरांव नामक एक आदिवासी युवक की मौत हो गई।

पटना के मोकमा थाना अंतर्गत लोगों ने 5 सितंबर को एक आदिवासी युवक को इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई और आरोप लगा दिया कि वह चोर था, जबकि पुलिस ने जांच कर पाया कि उसके पास कोई सामान ही नहीं था और वह शराब पी रखा था, पुलिस ने बताया कि युवक का नाम हरगु उरांव झारखण्ड का निवासी था और पास के ही इंट-भट्ठे पर काम करता था।
छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले अंतर्गत पारा में एक युवक ने एक 12 साल की नाबालिग आदिवासी लड़की को इस लिए जलाकर मार डाला कि वह सही ढंग से काम नहीं कर पाई। अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ के ही सारकेगुडा में नाबालिग आदिवासियों को नक्सली बता कर सुरक्षाबलों द्वारा मौत के घाट उतार देने की घटना को कौन नहीं जानता है।
बिहार के पूर्णिया जिला अंतर्गत रुपसपुर चंदवा में 22 नवंबर 1971 को पूरे गांव के संथाल आदिवासियों के घरों को जला कर, उन्हें गोली मार कर, लाशों को नदी में बहा दिया गया। झारखण्ड के साहेबगंज जिला अंतर्गत बांझी में भी 19 अप्रैल 1985 को 15 आदिवासियों को पुलिस की गोलियों से भून दिया गया।
क्या इन मौतों पर किसी ने उंगली उठाया, क्या इन आदिवासी मौतों पर सरकार या समाज द्वारा कोई विरोध किया गया? जो आदिवासी अपने हक और सुरक्षा के लिए आवाज उठाए, उसे नक्सली बता कर मार देना, आदिवासियों की जंगल, जमीन जबरन छीन कर उन्हें मरने के लिए छोड़ देना, जब चाहो आदिवासी को मार कर या गिरफ्तार कर अपराधी घोषित कर देना जैसे हथकंडे कोई नए नहीं है।
कौन नहीं जानता है कि भारत समेत पूरे दुनिया में आदिवासियों को साजिश के तहत खत्म किया जा रहा है, अब तो सिर्फ भारत और अफ्रीका में ही आदिवासी बचें हैं, जिन्हें किसी न किसी तरह से सरकार या कारपोरेट जगत खत्म करना चाहता है।
Rajan Kumar
कौन कहता है कि आदिवासियों के जान की भी कोई कीमत है!



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