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Wednesday, September 12, 2012

आदिवासियों के लिए अभिशॉप उत्तर प्रदेश
Rajan Kumar उत्तर प्रदेश में आदिवासियों को देखकर मुझे यह लगता है कि उत्तर प्रदेश में उनका होना ही उनके लिए अभिशाप है। उत्तर प्रदेश में आदिवासियों की जो स्थिति है उसे देखकर यहीं लगता है कि आदिवासियों को उत्तर प्रदेश में होना नहीं चाहिए। क्यों कि उत्तर प्रदेश इलाका मैदानी क्षेत्र है, कहीं छिट-फुट जंगल था, जो आदिवासियों का शरणगाह बना था, अब छिटफुट जंगल कट गए, खेत बन गए, इनका
आशियाना ही समाप्त हो गया।
रही बात आदिवासी योजनाओं की तो राज्य सरकार के तरफ से इस तरह की कोई योजना नहीं है, केंद्र सरकार की योजनाएं इन तक पहुंच नहीं पाती। आरक्षण की बात करें तो उत्तर प्रदेश की इतनी बड़ी आबादी में आदिवासी नगण्य के बराबर है, जिससे राज्य सरकार के योजनाओं में आरक्षण भी कभी-कभी मिलता है और यहीं कारण है कि केंद्र सरकार की योजनाओं में मिलने वाले आरक्षण से ये अनभिज्ञ रह जाते हैं।
अगर हम उत्तर प्रदेश में आदिवासी इलाकों की बात करें तो सबसे सोनभद्र जिले का नाम आता है, उसके बाद लखीमपुर खीरी का। जबकि बाकी क्षेत्रों में इक्का-दुक्का कहीं-कहीं आदिवासी हैं। सोनभद्र आदिवासी बहुल इलाका और यह संविधान के पांचवी अनुसूचि अंतर्गत आता है। इस जिले को उत्तर प्रदेश का ऊर्जाचंल भी बोला जाता है। प्रदेश का सबसे अमीर जिला होने के बावजूद यहां भूख और गरीबी से मर रहें हैं। यहां आदिवासियों की आबादी इतनी कम हो चुकी है कि प्रदेश के टॉप पांच आदिवासी आबादी वाले जिले में इसका कहीं नाम ही नहीं है।
सोनभद्र देश का एकमात्र ऐसा जिला है जो पांच राज्यों को एकसाथ जोड़ता है, समझ में नहीं आता इसे सोनभद्र का सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य। यह जिला बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश को एक दूसरे से जोड़ता है।
अगर यह जिला झारखण्ड या छत्तीसगढ़ में पड़ता तो उत्तर प्रदेश की अपेक्षा इसकी या यहां रहने वाले आदिवासियों की स्थिति कुछ अच्छी हो सकती थी, लेकिन हमेशा यहां आदिवासियों को उजाड़ा गया। पूरे जिले में कारपोरेट जगत की धूम है। खनिज पदार्थ निकाल कर प्रदेश सरकार अमीर तो हो रही है, लेकिन यहां की जनता भूख और गरीबी से मर रही है। पूरे सोनभद्र में खनन का कार्य चल रहा है, कहीं इक्के-दुक्के आदिवासी अपने जीवन की नैया पार लगाने की कोशिश कर रहें है।

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